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हज़रत अब्बास की याद में निकला काले अलम का जुलूस, मातम और नौहा ख्वानी के बीच दी गई इंसाफ की सीख

सौरिख (मुजीब हुसैन) — मोहर्रम की आठवीं तारीख को हज़रत अब्बास की याद में पारंपरिक काले अलम का जुलूस श्रद्धा और आस्था के साथ निकाला गया। यह जुलूस रात 11 बजे मोहल्ला ऊंचा में निसार हुसैन के आवास से आरंभ हुआ और विभिन्न मार्गों से होता हुआ नगर के दोनों प्रमुख इमामबाड़ों — इब्ने हसन और दिलशाद हुसैन — पर जाकर समाप्त हुआ।

जुलूस के दौरान शोकसभा, नौहा ख्वानी और सीनाज़नी के भावुक दृश्य देखने को मिले। शहर में जुलूस के मार्ग पर जगह-जगह अकीदतमंदों ने श्रद्धा के साथ स्वागत किया और इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए मातम किया।

जुल्म के खिलाफ खामोशी भी गुनाह है: अली अब्बास
मोहर्रम कमेटी के अध्यक्ष अली अब्बास ने इस मौके पर कहा कि “जुल्म करना और जुल्म सहना दोनों ही गुनाह हैं।” उन्होंने कहा कि इमाम हुसैन ने अपने 71 साथियों के साथ कर्बला में अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाकर यह संदेश दिया कि आतंकवाद या ज़ुल्म के खिलाफ खामोशी नहीं, बल्कि हिम्मत और कुर्बानी से मुकाबला करना चाहिए।

उन्होंने हज़रत अब्बास की बहादुरी को याद करते हुए कहा कि “अपने दोनों हाथ कटवाकर भी उन्होंने इस्लाम की राह पर कोई आंच नहीं आने दी। उनकी यह कुर्बानी भाईचारे और फिदा होने की मिसाल है।”

टैगोर का उल्लेख और इंसाफ का संदेश
अली अब्बास ने नोबेल पुरस्कार विजेता रविंद्रनाथ टैगोर के विचारों का हवाला देते हुए कहा कि “इंसाफ और सच्चाई को ज़िंदा रखने के लिए हथियारों की ज़रूरत नहीं होती, बलिदानों से भी जीत संभव है।” उन्होंने कहा कि यह वही संदेश है जो कर्बला से पूरी मानवता को मिला है।

प्रमुख लोग रहे मौजूद
इस अवसर पर ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य अली अब्बास नकवी के अलावा निशात हुसैन, नुसरत हुसैन, शीलू नकवी, हैदर अब्बास, अनवर रज़ा, असगर अब्बास, शमसुल हसन, ज़हीर अब्बास सहित कई गणमान्य नागरिक मौजूद रहे। सुरक्षा व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए थाना अध्यक्ष दिनेश कुमार अपनी टीम के साथ मौके पर उपस्थित रहे।

यह जुलूस न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक रहा, बल्कि अन्याय के विरुद्ध मानवता की बुलंद आवाज़ भी बना।

 

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